'ई का होता…. डीएनए के टेस्टिंग होता… मोदी के बिहारी पर डाउट बा…चेकिंग चलता'
मनीष शांडिल्य पटना से,
राजधानी वाटिका यानी इको पार्क पटना के सबसे बड़े और खूबसूरत पार्कों में से एक है. बीते कुछ दिनों से पार्क के मुख्य फाटक के पास एक टेंट लगा है और वहां बजते गाने लोगों का ध्यान खींच रहे हैं.
एक गाने के बोल कुछ यूं हैं, ई का होता…. डीएनए के टेस्टिंग होता… मोदी जी के बिहारी पर डाउट बा…चेकिंग चलता…यह ‘शब्दवापसी कैंप’ है. यहां डीएनए जांच के लिए लोगों के बाल और नाखून के नमूने लिए जा रहे हैं. शब्दवापसी अभियान के समर्थन में लोगों से पोस्टकार्ड भरवाए जा रहे हैं. एक याचिका भी तैयार करवाई गई है जिसपर लोगों के हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं. याचिका में लिखा है. ह्यह्यमुझे बिहारी होने पर गर्व है. हमारे डीएनए में कोई खराबी नहीं है. शक है तो जांच करा लें.
दरअसल 25 जुलाई को मुजफ्फरपुर की परिवर्तन रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाया था. पहले तो बिहार में सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड और उसके सहयोगी दलों ने इस टिप्पणी को पूरे बिहारियों को अपमान बताया. इसका पुरज़ोर विरोध किया. और फिर 10 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट कर शब्दवापसी अभियान की घोषणा कर दी. नीतीश कुमार ने अपने संदेश में कहा, हमारे बार-बार अनुरोध के बाद भी मोदी जी ने हमारे डीएनए के बारे में अपनी अपमानजनक टिप्पणी वापस नहीं ली है. ऐसे में हम शब्दवापसी अभियान शुरू कर रहे हैं. लेकिन भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि नीतीश कुमार इस अभियान के जरिए लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहते हैं. पार्टी की बिहार इकाई के प्रवक्ता और विधायक प्रेमरंजन पटेल कहते हैं, ह्यह्यप्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार के राजनीतिक डीएनए पर टिप्पणी की थी. बिहार की जनता यह समझ रही है. वह किसी झांसे में आने वाली नहीं है.
जदयू के प्रचार का काम देख रही कंसल्टेंसी एजेंसी इंडियन पॉलिटकल ऐक्शन कमेटी(आईपीएसी) अभियान का काम देख रही है. आईपैक के शशांक मेहता बताते हैं, ह्यह्यअभी पूरे बिहार में लगभग हर रोज करीब 500 जगहों पर ऐसे कैंप लगाए जा रहे हैं. पटना में करीब ऐसे 25 कैंप हर रोज अलग-अलग जगहों पर लगाए जाते हैं.आईपैक के मुताबिक हर कैंप में कम-से-कम तीन जदयू कार्यकर्ता होते हैं. जो अभियान से लोगों को जोड़ने का काम करते हैं.
वाटिका कैंप की जिÞम्मेदारी संभाल रहे शिव श्याम गौरव कहते हैं, ह्यह्यहम कैंप में आने वालों को बताते हैं कि प्रधानमंत्री की टिप्पणी से कैसे सभी बिहारी आहत हुए हैं. उन्हें समझाते हैं कि वो इस अभियान से जुड़ें. क्या इस काम के लिए उन्हें पैसे भी मिलते हैं? शिव और उनके साथी इससे इनकार करते हैं. हां, वे इतना जरूर बताते हैं कि उनके लिए दोपहर के खाने और दूसरी छोटी-मोटी जरूरतों का इंतजाम किया जाता है.
कैंप पर शिव और उनके साथी जब अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं तो इस दौरान सवाल-जवाब का भी दौर चलता है. जो अभियान से जुड़ते हैं उनके नाखून या बाल का नमूना लेकर उसे प्लास्टिक के एक छोटे बैग में डाला जाता है, नमूना देने वाला पोस्टकार्ड पर अपना पता दर्ज करता है. जिसके बाद पोस्टकार्ड को नमूने वाले प्लास्टिक बैग के साथ नत्थी कर दिया जाता है.
शिव श्याम गौरव बताते हैं, आईपैक टीम समय-समय पर कैंपों का जायजा लेने आती रहती है. जैसे ही 50 नमूने इकट्ठे हो जाते हैं, टीम लेकर चली जाती है.
हालांकि कोई ज़रूरी नहीं कि कैंपों में पहुंचने वाले सभी लोगों को डीएनए का अर्थ मालूम हो. वहां मौजूद कार्यकर्ता उन्हें इसकी बारीकियों के बारे में बताते हैं. वहां मौजूद कई आम लोगों ने बीबीसी को बताया कि वे समझते हैं कि इसका मतलब खून में मिलावट से है.
राजधानी वाटिका के बाहर शब्दवापसी कैंप तक आने वालों में सीतामढ़ी जिÞले के बेलसंड के योंगेद्र मुखिया भी थे.वे हर सोमवार आयोजित होने वाले ह्यजनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में शिकायत दर्ज कराने पटना आए थे. अभियान के लिए अपने नाखून का नमूना देने के बाद उन्होंने कहा, बिहार के राजा नीतीश कुमार हैं. राजा प्रजा का पिता होता है. डीएनए में खराबी कह कर राजा ही नहीं सभी बिहारियों का अपमान किया गया है. लेकिन विवेक कुमार जैसे युवा ऐसा नहीं मानते. वे शब्दवापसी कैंप के पास दो बार आए. सवाल-जवाब किया लेकिन अभियान से नहीं जुड़े. पटना के कंकड़बाग में रहने वाले विवेक का तर्क है, प्रधानमंत्री की टिप्पणी बिहार का अपमान नहीं था बल्कि केवल एक नेता का अपमान था.
इस अभियान के तहत नरेंद्र मोदी को 50 लाख डीएनए सैंपल भेजने का लक्ष्य रखा गया है. पहले चरण में 5 लाख नमूने जमा किए जा रहे हैं. आईपैक टीम के मुताबिक अब तक दो लाख से अधिक नमूने जमा कर लिए गए हैं. इन्हें महागठबंधन की 30 अगस्त की स्वाभिमान रैली के बाद दिल्ली भेजा जाएगा. स्वाभिमान रैली के बाद इस अभियान को हरेक गांव तक पहुंचाने की योजना है.
इस अभियान से जुड़े एक दिलचस्प पहलू के बारे में आईपैक टीम के शशांक मेहता बताते हैं, ह्यह्यमहिलाएं भी अभियान के लिए नमूने बिना झिझक के बाल काट कर दे रही हैं..डीएनए भी कभी राजनीतिक मुद्दा बन सकता है यह जानकर डीएनए की खोज करने वाले वैज्ञानिक फ्रांसिस क्रिक और जेम्स वाटसन भी शायद खुद ही चकरा जाएंगे! from bbchindi.com
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