लालू के क्षेत्र में दरका ‘माय’ समीकरण
सुशील कुमार सिंह, छपरा
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की कर्मभूमि रही सारण में एक बार फिर ‘माय’ समीकरण दरक गया। स्थानीय प्राधिकार के विधान परिषद चुनाव में भाजपा बड़े अंतर से जीत गई। यहां विधान परिषद के चुनाव में पहली बार ‘कमल’ खिला है। वैसे तो बिहार विधान परिषद के उपसभापति रहे जदयू उम्मीदवार सलीम परवेज के खिलाफ मतदाताओं में थोड़ी नाराजगी थी और एंटी कमबैन्सी फैक्टरकाम कर रहा था, लेकिन महागठबंधन के आधार वोटों में निर्दलीय प्रत्याशी संजय कुमार ने बड़ी सेंध लगाई। दरअसल संजय कुमार ही वह दूसरे महत्वपूर्ण फैक्टर रहे, जिन्होंने भाजपा को शुरुआती दौर से ही मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दी थी। उन्होंने यदुवंशी मतों पर खास तौर पर फोकस किया और अपेक्षाकृत ज्यादा होमवर्क उनकी बहुलता वाले इलाकों में ही किया। हालांकि इसका अहसास राजद के बड़े नेताओं को भी समय रहते हो गया था, लेकिन उन्हें अनुमान था कि राजद सुप्रीमो सब कुछ संभाल लेंगे। हालांकि ऐसा नहीं हुआ और महागठबंधन के वोटों के बंटवारे के बाद भाजपा उम्मीदवार ई. सच्चिदानंद राय ने जदयू उम्मीदवार को बुरी तरह पटखनी दे दी।
बोले थे राजद सुप्रीमो-छपरा जा रहा सलीम के लिए
छपरा में वैसे तो बीते 21 जून को राजद का प्रमंडलीय सम्मेलन आयोजित था, लेकिन सम्मेलन के बहाने विधान परिषद चुनाव का जातीय समीकरण साधने का उद्देश्य भी साफ तौर पर दिखा था। छपरा पहुंचने के पूर्व राजधानी पटना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बातचीत में लालू प्रसाद ने साफ तौर पर कहा था-मैं सलीम के लिए छपरा जा रहा हूं। यहां रामजयपाल कॉलेज में पार्टी का सम्मेलन होने के बाद भी मंच पर जदयू उम्मीदवार परवेज मौजूद थे। परवेज ने मंच से लालू प्रसाद के इस बयान के लिए हाथ जोड़ आभार भी जताया था। लालू भी बोले-सलीम अपना ही है। सबमें एमएलए-एमपी बनने का ख्वाब होता है। ये भी लड़े, लेकिन हमें कोई शिकायत नहीं है। लालू का इशारा था-राबड़ी की हार के बाद भी वे सलीम को सपोर्ट करने आये हैं। परवेज के आग्रह पर वे उनके चुनाव कार्यालय का उद्घाटन करने भी गये। आखिर में उन्होंने मंच से विरोधियों खासकर भाजपा के यादव नेताओं को ललकारते हुए कहा-कहता है सब, यादव समाज लालू से छिटक गया है। यह संभव है? फिर अपने चिरपरिचित अंदाज में कहा था- ए यादव जात, हिल-डुल मत होना। यही नहीं मंच पर मौजूद पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह ने भी निर्दलीय संजय का नाम लिये बिना कहा था- एक गो कहत फिरत बा कि लालूजी के आशीर्वाद मिल गइल बा। हम पता कइनी ह त उ कबहीं राजद के संगे रहले नइखे। उ भाजपा के वोट देला। हालांकि लोकसभा चुनाव में राबड़ी की हार के लिए यादव समाज कहीं न कहीं परवेज को कुछ हद तक जिम्मेदार मान रहा था और विकल्प के लिए उनके सामने संजय कुमार के रूप में एक प्रत्याशी भी था। लिहाजा इसका असर अंत तक दिखा और लालू प्रसाद व प्रभुनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की बातों पर भी उन्हें भरोसा नहीं हुआ।
लोस चुनाव में भी दरका था समीकरण, हारी थीं राबड़ी
करीब एक साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी यहां ‘माय’ समीकरण दरका था। तब जदयू उम्मीदवार सलीम परवेज थे और राजद उम्मीदवार थीं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी। परवेज को करीब एक लाख आठ हजार वोट मिले थे। इसमें मुस्लिम मतों की अहम भूमिका थी। राबड़ी देवी करीब 48 हजार मतों से चुनाव हार गईं। वे छपरा विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 47 हजार मतों से चुनाव हार गई, जहां जिले में अल्पसंख्यक मतों की आबादी सबसे ज्यादा है।
छपरा उपचुनाव की हार का बदला लेने में सफल रही भाजपा
सारण निकाय सीट से विधान परिषद का चुनाव जीत भाजपा पिछले साल छपरा उपचुनाव में हुई करारी हार का बदला लेने में सफल रही। पिछले साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में सारण के दोनों संसदीय क्षेत्रों- सारण और महाराजगंज में भाजपा ने जीत का परचम लहराया था। यह पहला मौका था, जब दोनों सीटों पर एक साथ भगवा ध्वज फहराया था। महाराजगंज में तो पहली बार भाजपा का खाता खुला था। हालांकि तब मोदी लहर पर सवार भाजपा इस जीत का ‘हनीमून पीरियड’ ही मना रही थी कि करीब ढाई माह बाद ही छपरा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी। तब तक महागठबंधन आकार ले चुका था। राजद ने यह सीट भाजपा से छीन ली थी। तब महागठबंधन की ओर से दावा किया गया कि मोदी लहर का जादू कम होने लगा है और महागठबंधन के पक्ष में सामाजिक समीकरण मजबूत हुआ है। हालांकि तब भाजपा की हार में भी बागी प्रत्याशी डॉ सीएन गुप्ता की अहम भूमिका रही थी। भाजपा प्रत्याशी कन्हैया सिंह और निर्दलीय डॉ सीएन गुप्ता के वोटों का जोड़ राजद उम्मीदवार से अधिक था। यह स्थिति तब थी, जब महाराजगंज से प्रभुनाथ सिंह की हार को ले राजपूत वर्ग में उनके प्रति सहानुभूति उपजी थी और इसी मौके की नजाकत और इसी क्षेत्र में ढाई माह पहले ही राबड़ी देवी की करारी हार को देखते हुए लालू प्रसाद ने प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर कुमार सिंह पर दांव लगाया था। तब माय समीकरण भी यहां नहीं दरका था। रणधीर का फ्रेश चेहरा था और वे पहली बार ही चुनावी अखाड़े में उतर बाजी मार ले गये। लेकिन ठीक इसी तर्ज पर करीब ग्यारह माह बाद भाजपा को यहां सफलता मिल गई। उपचुनाव में भाजपा का वोट बंटा तो इस बार राजद-जदयू गठबंधन का। पिछली बार भाजपा हारी तो इस बार जदयू को पराजय झेलनी पड़ी।
ब्रह्र्षि वोटरों की संख्या कम, फिर भी सच्चिदानंद की जीत
सारण में अपेक्षाकृत ब्रह्र्षि वोटरों की संख्या कम है। करीब साढ़े पांच हजार मतदाताओं में से यदुवंशी, राजपूत व अतिपिछड़ा मतदाताओें की संख्या एक-एक हजार से ज्यादा है, लेकिन इनमें से किसी समाज का प्रत्याशी न जीत ब्रह्र्षि समाज के प्रत्याशी सच्चिदानंद राय की जीत हुई है। इससे तो जाहिर है कि यहां उम्मीदवार की जीत जाति के लिहाज से नहीं हुई है। अल्पसंख्यक मत जरूर सलीम परवेज को मिले और इसी तरह ब्रहर्षि समाज का वोट भी सच्चिदानंद राय पाने में सफल रहे। हालांकि यदुवंशी व राजपूत मतों का बंटवारा हुआ। यदुवंशी समाज का आधा से अधिक वोट स्वजातीय संजय कुमार को मिले, लेकिन कुछ वोट माय समीकरण के लिहाज से जदयू प्रत्याशी को भी मिले। इसी तरह राजपूत समाज के वोट सच्चिदानंद राय को मिले तो कुछ इलाकों में पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह की बदौलत सलीम परवेज को भी मिले। from livehindustan.com
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