बिहार की राजनीति में नाकामयाब होतीं महिलाएं
अनिल सिंह झा. पटना। राजनीति के क्षितिज पर किस्मत आजमाने में महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं हैं। पार्टी से टिकट न मिलने पर अपने बलबूते ही चुनाव मैदान में उतरने से परहेज नहीं करती। यह बात अलग है कि चुनाव में वे अपनी चमक बिखेरने में कामयाब न हो सकीं। प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या करीब 5.5 करोड़ है, जो पुरुष मतदाताओं से कुछ ही कम है। इतनी बड़ी आबादी पर तमाम राजनीतिक दलों की नजर रहती है और इनलोगों को अपनी तरफ करने की तरह-तरह की कोशिशें की जाती हैं।
हर दल महिला प्रकोष्ठ का गठन कर सभी पदों पर महिलाओं को विराजमान कर देता है। लेकिन, दल के दूसरे प्रकोष्ठ या सेल के वरीय पदों पर शायद ही किसी महिला को मनोनीत किया जाता हो। राजनीतिक दलों के बीच महिलाओं का सबसे बड़ा हिमायती होने की होड़ लगी रहती है। जब किसी महिला पर अत्याचार होता है तो सभी दल सड़क पर निकल कर धरना-प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहते। साथ ही मौका मिलने पर महिलाओं को अधिकार दिलाने की बड़ी-बड़ी बात करने में भी संकोच नहीं करते। लेकिन, महिलाओं का सबसे बड़ा हिमायती होने का दावा करने वाले दल विधानसभा चुनाव के वक्त उन्हें टिकट देने के मामले में दिलेरी नहीं दिखा पाते हैं।
इस विधानसभा पर गौर करने से महिलाओं के प्रति दलों की दिलेरी का पता चल जाता है। 142 सीटों पर चुनाव लड?े वाली जदयू ने सिर्फ 24 महिलाओं को ही टिकट के योग्य समझा। इसी तरह भाजपा ने 101 के विरुद्ध मात्र 11 महिलाओं को ही अपना उम्मीदवार बनाया। शेष दलों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही रही। राजद ने छह, लोजपा ने सात, सीपीआइ ने तीन, सीपीआइ (एम) ने दो, सीपीआइ (एमएल) ने 11 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा।
ऐसा नहीं कि राजनीतिक दलों द्वारा मौका न दिए जाने पर महिलाएं खामोश होकर बैठ गईं। राजनीतिक दलों के व्यवहार से क्षुब्ध महिलाओं ने निर्दलीय ही चुनाव मैदान में चुनौती दे दी। कुछ तो पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ ही मैदान में उतर गईं। महिलाओं के आक्रामक रूख से पार्टी के उम्मीदवार भी सहम गए।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाने को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 158 महिलाएं खड़ी हुईं। सबको उम्मीद थी कि कम से कम से कम पांच- छह सीटों पर निश्चय ही फतह हासिल होगी, लेकिन ऐसा कुछ न हुआ और पार्टी प्रत्याशी के सामने निर्दलीय महिला प्रत्याशी टिक नहीं सकीं। इस मामले में डेहरी सीट से चुनाव मैदान में उतरीं ज्योति रश्मि भाग्यशाली रहीं। उन्होंने यहां से फतह हासिल की। अधिकांश निर्दलीय महिला प्रत्याशी अपनी जमानत तक बचा पाने में कामयाब न हो सकीं।jagran.com
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