इस गांव में एमबीए से लेकर इंजीनियर पकड़ते हैं मछली, करोड़ों में कर रहे कमाई
पंकज कुमार सिंह
पटना(बिहार)। कभी हजार रुपए का इंतजाम करना मुश्किल था और आज लाखों रुपए की व्यवस्था चंद मिनटों में हो जाती है। यह मछलीपालन से संभव हो सका।मछलीपालन ने समस्तीपुर सरायरंजन के शहजादापुर गांव के लोगों की तकदीर बदल दी। यहां की लाइफस्टाइल भी बदल गई है। यहां पानी में डूबे खेत में कोई फसल नहीं होती थी। आज यह जमीन धन बरसाने लगी है। 80 एकड़ जमीन में बने तालाब से सालाना डेढ़ से दो करोड़ रुपए तक कमाई होती है। मछलीपालन के लिए किसानों ने सहकारी समिति बनाई है। इसमें गांव के 50 से 37 किसान जुड़ गए हैं।
इंटीग्रेटेड खेती पर भी जोर : 2009 से यहां मछलीपालन की शुरुआत हुई थी। प्रॉफिट देखकर आस-पास के गांव के लोग भी मछलीपालन करने लगे हैं। विद्यापति डुमदहा चौर और क्योंटा दलसिंहसराय के किसान भी यहां के किसानों से मछलीपालन का गुर सीख कर मछलीपालन करने लगे हैं। साथ ही यहां समेकित (इंटीग्रेटेड) खेती पर भी किसानों का जोर है। मछली के साथ दूध, अंडा, मांस, फल व सब्जी का भी उत्पादन हो रहा है।
सालाना 200 टन मछली : तालाब से ही मछली बिक जाती है। इन तालाबों से सालाना 200 टन मछली समस्तीपुर जिले में खपत हो जाती है। यहां रोहू, कतला व नैनी मछली होती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड के अधिकारी भी यहां मछलीपालन देखने पहुंच चुके हैं। फिशरी डायरेक्टरेट की ओर से यहां के किसानों को फैसिलिटीज की गईं है। पानी नहीं सूखे इसके लिए सोलर पंप सेट लगाए गए हैं। तालाब की मेढ़ पर सब्जी व केले व अमरूद की खेती भी होती है। गौपालन के साथ ही मुगीर्पालन भी हो रही है। तालाब में बतख पालन भी हो रहा है।
एमबीए व इंजीनियरिंग के बाद मछलीपालन
फिशरी साइंटिस्ट की सलाह गांव वालों की मेहनत और लगन ने यहां की लाइफस्टाइल भी बदल दी। कल तक गांव के स्कूलों में पढ़ाई करने वाले बच्चे अब शहरों के बड़े स्कूलों में पढ़ने लगे हैं। किसान अपने बच्चों को इंजीनियरिंग व एमबीए आदि की पढ़ाई कराने में काबिल हो गए हैं। एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी यहां के कई बच्चों ने बड़े पैकेज पर नौकरी की जगह मछलीपालन करना बेहतर समझा। गांव के विकास कुमार भी ऐसे ही युवक हैं, जो एमबीए की डिग्री लेने के बाद मछलीपालन का काम कर रहे हैं।
एनएफडीबी के एक करोड़ के प्रोजेक्ट का इंतजार
शहजादापुर के सोनमार्च चौर फिशरी डेवलप्मेंट कमिटी के मेंबर सुनील कुमार ने बताया कि तत्कालीन जिला फिशरी आॅफिसर डॉ. टुनटुन सिंह ने मछलीपालन की सही तकनीक बनाने के साथ खूब मोटीवेट किया। तब सभी किसान तालाब बनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। बाद में कारवां बढ़Þा और आज यह इलाका मछलीपालन का मॉडल बन चुका है। एनएफडीबी ने मछलीपालन ट्रेनिंग सेंटर, फिश फीड मिल और अन्य के लिए एक करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया है। पर, डिपार्टमेंटल लेटलतीफी में अभी यह फंसा है।
लोगों में जबर्दस्त इच्छाशक्ति
फिशरी साइंटिस्ट डा. टुनटुन सिंह का कहना है कि गांव के लोग फिशरी के बिजनेस को लेकर मोटिवेटेड हैं। मछलीपालन के लिए आंध्रप्रदेश भेज कर इन्हें ट्रेंनिंग दी गई। डिपार्टमेंट के स्तर पर जो फैसिलिटी दिलाई जा सकती थीं, दिलाने का प्रयास किया गया। गांव वालों ने जब भी बुलाया, मछलीपालन में आ रही दिक्कतों का समाधान किया।from dainikbhaskar.com
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