संघर्ष से पीछे हटा वामपंथ

left partyमनीष शांडिल्य. पटना
नब्बे के दशक के अंत तक बिहार में वामपंथी दलों की दमदार मौजूदगी सड़क से लेकर सदन तक दिखाई देती थी। उस दौर में बिहार विधानसभा में वामपंथी दलों के 30 से अधिक विधायक हुआ करते थे। वर्तमान विधानसभा में मात्र एक वामपंथी विधायक सदन में है। बिहार में वामपंथी जनता के सवालों पर कोई बड़ा आंदोलन या लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हुए भी नहीं दिखाई देते। वामपंथी दलों के नेता इन सबके लिए अलग-अलग कारणों को जिÞम्मेदार मानते हैं।
सीपीआई (एमएल) बिहार की बड़ी वामपंथी पार्टी है। पार्टी के राज्य सचिव कुणाल सूबे में वामपंथ की कमजोर स्थिति के बारे में कहते हैं, हाल के दशकों में ग्रामीण समाज की पुरानी सामंती व्यवस्था में कई बदलाव आए। लेकिन वामपंथी पार्टियों ने इन बदलावों के हिसाब से अपनी लड़ाई को आगे नहीं बढ़Þाया। छठी बिहार विधानसभा में 35 विधायकों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सदन में विपक्षी पार्टी बनी थी। लेकिन वर्तमान विधानसभा में पार्टी का एक मात्र विधायक है।
पार्टी की बिहार राज्य परिषद के सचिव सत्य नारायण सिंह बताते हैं, वामपंथी एकता की कमी और आम जनता के सवालों पर संघर्ष से पीछे हटने के कारण आज बिहार में वामपंथ की यह स्थिति है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या वर्तमान हालात में वामपंथी दल एक बार फिर अपनी खोई राजनीतिक जमीन हासिल कर पाएंगे? सर्वोदय शर्मा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम के राज्य सचिव मंडल सदस्य हैं। उनके मुताबिक सांप्रदायिकता और नव-उदारवाद के खिलाफ लड़ाई को जोड़ने से बिहार में वामपंथ को फिर से जनता का व्यापक समर्थन मिलेगा। एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल स्टडीज के निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं कि वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में गरीबों और आम लोगों की मुश्किलें बढ़ÞÞी हैं। ए हालात वामपंथियों को सूबे में फिर से उनकी जमीन वापस करने का मौका दे सकते हैं। वे कहते हैं, सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के आधार पर रणनीति बनाकर अपने एजेंडे पर ए आगे बढ़ÞÞें तो इनकी स्थिति बेहतर होगी।
संकट ने किया एकजुट
कठिन दौर ने राज्य में सक्रिय छह प्रमुख वामपंथी दलों को एकजुट होने को मजबूर किया है। इनमें सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई (एमएल) जैसे दल शामिल हैं। हाल में हुए बिहार विधान परिषद का चुनाव इन दलों ने मिलकर लड़ा. साथ ही विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने की घोषणा कर दी गई है। पार्टी के कार्यकर्ता बड़े अभियान चलाने के लिए लगातार जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में 21 जुलाई को केंद्र और बिहार सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बिहार बंद का आयोजन किया गया था। लेकिन बंद और दूसरे कार्यक्रम कितने प्रभावी हो पाएंगे यह कुछ ही दिनों में होने वाले बिहार चुनावों में साफ हो जाएगा।

राज्य में वामपंथी दलों का चुनाव में प्रदर्शन
साल         सीटें     
सीपीआई     सीपीएम     सीपीआई (एमएल)
1990             23     6     7 (आईपीएफ)
1995             26     6     6
2000             2     2     5
फरवरी, 2005     3     1     7
अक्तूबर, 2005    3     1     5
2010             1     0     0
(1990 में सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवारों ने इंडियन पीपुल्स फ्रंट के बैनर तले चुनाव लड़ा था.)           
(from बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम)






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