क्या नीतीश के बिछाए जाल से भाजपा की योजनाओं पर फिरेगा पानी?
बद्री नारायण
बिहार के चुनाव प्रचार का माहौल बनने लगा है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू, राष्ट्रीय जनता दल एवं कांग्रेस के महागठबंधन एवं भाजपा दोनों अपने प्रचार की रणनीति बनाने में जुट गए हैं.डिजिटलीकरण, मोबाइल फोन और इंटरनेट के बढ़Þते उपयोग प्रभाव को देखते हुए नीतीश ने खासकर उन युवाओं के साथ जुड़ने की कोई कसर नहीं छोड़ी है, जो वोट बैंक का एक प्रमुख हिस्सा है. जबकि भाजपा भी ऐसे मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. बहुत हुआ जुमलों का वार, फिर एक बार नीतीश कुमारह्ण के नारों के साथ नीतीश कुमार की तस्वीर वाली होडिंर्गो से बिहार के प्रमुख इलाके पटे पड़े हैं. तकनीक के दम पर महागठबंधन दलितों, पिछड़ों से लेकर गांवों और शहरों तक पहुंचना चाहता है.इस दिशा में जदयू के चुनावी अभियान का एक प्रमुख शो ह्यहर घर दस्तकह्य आम जनता को लुभाने में काफी कारगर सिद्ध हो सकता है. यह जदयू का एक महत्वाकांक्षी अभियान है जिसके माध्यम से वह इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में तीन करोड़ मतदाताओं तक पहुंचने की उम्मीद कर रहा है. यह अभियान दो चरणों में 2 से 11 जुलाई और 21-31 जुलाई, 2015 तक चलेगा. नीतीश की ए चुनावी रणनीति उनके दूसरे चुनावी अभियान जैसे मुख्यमंत्री के साथ नाश्ता, परचे पर चर्चा, संवाद और बिहार विकास संवाद की अपेक्षा आम लोगों पर ज़्यादा केंद्रित है. इस अभियान में मुख्यमंत्री, नेता हमारे घर आए हैं, जैसा आत्मगर्व जगाने की कोशिश छुपी हुई है जो आम जनता और नेता के बीच की दूरी को कम करने के अहसास पर टिका हुआ है. पिछड़े एवं युवा मतदाता, जो सवर्णों के साथ मिलकर पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में बीजेपी की बड़ी जीत के कारण बने थे, इस अभियान में उनपर लक्ष्य साधा जा रहा है. नीतीश कुमार की प्रचार रणनीति पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी के पक्ष में गए मतों को अपने पाले में लौटाना है. युवा मतदाताओं के एक बड़े भाग को सोशल साइट्स, मोबाइल फोन के नेटवर्कों के जरिए इस अभियान में जोड़ने की कोशिश हो रही है.
घर घर द स्तक अभियान के रीयल और वर्चुअल यानि प्रतीकात्मक दोनों ही तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं. जहां वे पंहुच नहीं पा रहे हैं वहां मीडिया, सोसल साइट्स, अखबारों में इसकी इतनी चर्चा हो रही कि लोग इससे अछूते नहीं हैं. इसमें एक साथ आधारतल और मध्य वर्ग, पिछड़े, दलित एवं सवर्ण, शहरी एवं ग्रामीण मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश की बात की जा रही है. इस नए चुनावी अभियान की रणनीति का प्रतीकात्मक और वास्तविक प्रभाव इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि नीतीश कुमार ह्यहर घर दस्तकह्य के लिए किन परिवारों का चयन करते हैं. नीतीश को अपने इस अभियान में यह सावधानी बरतनी पड़ेगी कि ए परिवार सबसे वंचित वर्गों और समाज के निचले तबकों के हों न कि प्रभावी ठेकेदार, धनाढ्य और सामंती परिवार तक ही सीमित न हों… समाज के निचले तबकों से जुड़ाव ही आखिरकार अपेक्षित चुनावी परिणाम सामने लाएगा.
अगर अभियान इस तरह के लोगों तक पहुंचने में असफल रहा तो ए सिर्फ एक फ्लॉप शो होकर रह जाएगा. अभियान के लिए पहले घर का चुनाव यही दशार्ता है. इस चुनावी अभियान की एक और ठोस प्रतिक्रिया यह भी हो सकती है कि जिन परिवार तक ए यात्रा नहीं पहुंच पाएगी, उन्हें यकीनन ठेस पहुचेंगी.
आत्मगर्व जगाने, जनता और नेता की नजदीकी बढ़Þाने के जिस तर्ज पर यह अभियान टिका है, वे जिस दरवाजे नहीं जाएंगे, उनकी नाराजगी झेलनी पड़ेगी.अपनी चुनावी छवि को और अधिक निखारने के लिए नीतीश के लिए यह जरूरी है कि वे मतदाताओं को अपने प्रयासों के बारे में अवगत कराएं और भविष्य में विकास की अपनी योजनाओं से उन्हें रूबरू करवाएं. यह जदयू और आरजेडी टीम के लिए एक बहुत बड़ा अवसर ही नहीं है बल्कि चुनौतियों से निपटने के लिए भी अहम घड़ी है.अगर यह दोनों पार्टियां मतदाताओं को लुभाने और वोट बैंक का बड़ा हिस्सा पाने में सफल हो जाते हैं तो वे बिहार में भाजपा की योजनाओं पर पानी फेर सकते हैं. (- लेखक बद्री नारायण कवि एवं समाजशास्त्री है। आलेख बीबीसी हिंदी डॉटकॉम से )
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