बिहार में कुल वोटरों में 15% यादव समुदाय से है। पिछले लोकसभा चुनाव में इनमें से 16% वोटरों ने जेडीयू और 20% ने आरजेडी को वोट दिया। बाकी यादव वोटरों में से 19% एनडीए के पक्ष में चले गए। इस बार लालू-नीतीश मिलकर आधे से ज्यादा यादव वोटरों को अपने पक्ष में करना चाहते हैं।
3. महादलित
इन वोटरों की बिहार में संख्या 16% है। पिछले लोकसभा चुनाव में इनमें से 25% ने जेडीयू और 33% ने एनडीए को वोट दिए। महादलित चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले जीतनराम मांझी अब जेडीयू के साथ नहीं हैं। वे भाजपा के साथ चुनाव लड़ेंगे। इससे एनडीए को महादलित वोटरों के असर वाली कम से कम 30 सीटों पर फायदा मिल सकता है।
4. मुस्लिम और कुर्मी
राज्य में 16% मुस्लिम और 7% कुर्मी वोटर हैं। इनमें से मुस्लिम वोटर आरजेडी, कांग्रेस और सीपीआई को वोट देते रहे हैं। कुर्मी वोटरों पर जेडीयू का अच्छा प्रभाव है। वहीं, एनडीए को लोकसभा चुनाव में एक-तिहाई कुर्मी वोटरों ने समर्थन दिया था। लेकिन 2% ही मुस्लिम वोटरों का साथ मिला था। लालू-नीतीश अगर कांग्रेस-सीपीआई के साथ सीटों का तालमेल करते हैं तो एनडीए के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
5. अपर कास्ट
लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपर कास्ट के कुल 78% वोट मिले। जबकि 53% ओबीसी और 33% महादलितों ने उसे वोट किया। 2009 में जब भाजपा ने जेडीयू के साथ बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब भी अपर कास्ट के 65% वोटरों का उसे समर्थन मिला था।
मांझी के साथ आने से भाजपा को कितना फायदा?
पिछले दिनों पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात कर भाजपा के साथ चुनाव लड़ने का एलान किया। मांझी महादलित समुदाय की मुसहर जाति से आते हैं। इस जाति के वोटर गया, जहानाबाद, खगड़िया, सुपौल, अररिया की करीब 30 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। शाहाबाद और चम्पारण की 12 से ज्यादा सीटों पर भी इस जाति के वोटरों का असर है। मांझी के साथ आने से एनडीए को इन सीटों पर फायदा मिल सकता है। बिहार में महादलित आबादी 22% है। इस समुदाय के वोटरों की संख्या 16% है। लोकसभा चुनाव के दौरान इन वोटरों में से 25% ने जेडीयू और 33% ने एनडीए को वोट दिए थे। मांझी जेडीयू के खाते में गए वोटों में भी सेंध लगा सकते हैं। वहीं, एनडीए के साथ जुड़ने से मांझी को बिहार की राजनीति में अपना अस्तित्व बनाए रखने में मदद मिलेगी।
कितनी है मांझी के लिए एनडीए में गुंजाइश?
लोकसभा चुनाव के दौरान पासवान की एलजेपी ने 6 सीटें जीती थीं। 36 विधानसभा क्षेत्रों में वह आगे थी। कुशवाहा की पार्टी ने भी 3 लोकसभा सीटें जीती, यानी 18 विधानसभा क्षेत्रों में वह आगे रही। भाजपा ने 22 लोकसभा सीटें जीती थी। मांझी के साथ आने से पहले भाजपा नेताओं ने कहा था कि उनकी पार्टी कम से कम 180 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। लेकिन सीटें लोकसभा चुनाव के नतीजों के लिहाज से बंटीं तो मांझी अपने उम्मीदवारों के लिए 50 सीटों पर दावेदारी नहीं कर पाएंगे। संकेत हैं कि भाजपा उन्हें 30 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती। भाजपा ने एनडीए के लिए कुल 182 सीटें लाने का टारगेट रखा है।
बिहार में क्या रही पिछले दो चुनावों में स्थिति?
पार्टी |
2014 लोकसभाचुनाव में वोट शेयर |
सीटें 40 मेंसे |
2010 विधानसभाचुनाव में वोट शेयर |
सीटें 243में से |
जेडीयू |
16% |
2 |
22.6% |
115 |
बीजेपी |
29.9% |
22 |
16.5% |
91 |
आरजेडी |
20.6% |
4 |
18.8% |
22 |
कांग्रेस |
8.6% |
2 |
8.4% |
4 |
एलजेपी |
6.5% |
6 |
6.7% |
3 |
अन्य |
18.4% |
4 |
27% |
8
|
बिहार चुनाव के लिए बीजेपी की टीम
बीजेपी में अनंत कुमार, धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव और सौदान सिंह बिहार चुनाव का कामकाज देख रहे हैं । अनंत को प्रभारी और धर्मेंद्र प्रधान को सह चुनाव प्रभारी बनाया गया है। इसके अलावा, तीन सदस्यीय टीम बनाई गई है। इसमें धर्मेंद्र प्रधान , भूपेंद्र यादव और सौदान सिंह हैं । पूरी टीम सीधे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को रिपोर्ट करती है। भूपेंद्र यादव बिहार बीजेपी के प्रभारी हैं, जबकि सौदान सिंह पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री है और उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी गई है।
from dainikbhaskar.com
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