महाविलय से टिकट मांगनेवालों में मचेगी भगदड़
बिहार कथा. पटना।
जनता परिवार के एकीकरण की प्रक्रिया के बीच बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर गणित लगने शुरू हो गये हैं। इतना तय माना जा रहा है कि इसी वर्ष होने वाले चुनाव से पहले वहां तेजी से समीकरण बदलेंगे। इन समीकरणों के लिहाज से फिलहाल तो रणनीतिकारों व राजनीतिज्ञों को भाजपा वहां भारी पड़ती नजर आ रही है। बिहार की राजनीति में बड़ा गुणात्मक परिवर्तन लोकसभा चुनाव के समय आया जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जाति-बिरादरी, ऊंच-नीच का तिलस्म तोड़ सूबाई वोटरों 40 लोकसभा की सीटों में से 31 सीटों पर भाजपा और गठबंधन दलों को जिताकर साफ कर दिया कि विकास की राजनीति में वे मोदी के साथ कदमताल करेंगे। कहा जा रहा था कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग पैटर्न पर वोटिंग होती है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोटरों ने उसे भी ध्वस्त कर दिया और पहली बार एकतरफा भाजपा सत्तानशीं हुई। तमाम सामाजिक समीकरणों को दरकता देख भाजपा विरोधी दलों में गोलबंदी शुरू हुई। लालू प्रसाद के राज को जंगलराज की संज्ञा देकर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचे जदयू नेता नीतीश कुमार अब उन्हीं के समर्थन से सरकार चला रहे हैं। जनता परिवार के एका की दुहाई दी जा रही है। दावा किया जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश, ओमप्रकाश चौटाला जैसे पुराने समाजवादी नेता एक मंच से राजनीति करेंगे। एकबार यह मान भी लिया जाए कि एक झंडा, एक निशान पर सभी में एकराय बन जाएगी लेकिन बिहार में जदयू-राजद के विलय से एक नया सियासी-स्यापा शुरू होगा। बड़ी संख्या में दोनों पार्टियों से नेता टूटकर लोजपा, राष्टÑीय लोकसमता पार्टी और भाजपा में जाने की संभावना हैे। बिहार की 243 विधानसभा सीटों के चुनाव में जनता परिवार और भाजपा ने नेतृत्व में राजग गठबंधन के बीच पहली बार सीधी टक्कर होगी। राजद महासचिव विनोद यादव और जदयू के रणनीतिकार मनोज सिन्हा ने माना कि विलय के बाद कार्यकर्ताओं और नेताओं खासकर टिकटों की आशा लगाए नेताओं में भगदड़ की स्थिति होगी। जिसका सीधा फायदा पहले भाजपा को और फिर उनके सहयोगी दल लोजपा और रालोसपा को होने की संभावना है।
बिहार में जनता परिवार के एक होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने अभी तक अलग लड़ने का मन बनाया हुआ है। जदयू सरकार की पूर्व महिला कल्याण मंत्री प्रवीण अमानुल्लाह के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने भी तैयारी की हुई है। यही कारण है कि दिल्ली प्रवास के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव साथ लड़ने का न्यौता दिया था। कांग्रेस और आप भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो मुस्लिम वोटरों का बंटवारा होगा। लालू यादव के साथ अब तक कहा जाता रहा है कि मुस्लिम और यादव वोटर एकजुट हैं। जब कि लोकसभा के परिणाम यह बताने को काफी हैं अब न तो मुस्लिम और न ही यादव वोटरों पर राजद का एकाधिकार है। लोकसभा की 40 सीटों में से केवल तसलीमुद्दीन राजद से जीत पाए हैं। जब कि बाकी दो सांसद लोजपा और कांग्रे्रस से हैं। हुकुमदेव नारायण यादव, रामकृपाल यादव और ओमप्रकाश यादव के रूप में भाजपा के पास तीन यादव सांसद हैं। जब कि यादव सुप्रीमो लालू यादव के राजद से केवल जयप्रकाश नारायण यादव ही जीत सके। भाजपा के रणनीतिकार इसे बखूबी समझ रहे हैं इसीलिए राज्य का प्रभार भी यादव बिरादरी के भूपेंद्र यादव को सौंपा है। बिहार की राजनीति का सामाजिक मूल्यांकन करने वाले डा. मुनाजिर हसन कहते हैं, ‘मोदी लहर ने लोकसभा चुनाव में निश्चित रूप से सभी समीकरणों को तोड़फोड़ दिया था। बिहार के पिछड़ों का बड़ा तबका भी अब मोदी को अपना नेता मानता है। नीतीश-लालू के साथ होने के बाद बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि दोनों भाजपा के खिलाफ साथ हुए या फिर अपनी सत्ता बचाने। पिछड़े ’यादव-मुस्लिम वोट 28 फीसदी है। जनता परिवार का नेता नीतीश कुमार ही होंगे अगर भाजपा ने भी चुनाव से पहले अपना नेता घोषित कर दिया तब मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने जदयू नेतृत्व के खिलाफ पहले ही दलितों के बीच मोर्चा खोला हुआ है। लिहाजा, नीतीश का महादलित गठबंधन इस बार बिखरता नजर आ रहा है। भाजपा के लिए फिलहाल ‘विन-विन सिचुएशन’ है।
Related News
25 से 30 सांसदों की लालच में कांग्रेस ने लालू को अपना संगठन बेचा : प्रशांत किशोर
संवाददाता, मधुबनी : जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस और भाजपा पर निशाना साधाRead More
जाति आधारित गणना के गर्भ से निकली थी महागठबंधन सरकार
अब सर्वे रिपोर्ट बताएगी उसकी ताकत —- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार —- प्रदेश में जातिRead More
Comments are Closed