हाजीपुर : शायद होली का यह नया अवतार है. क्योंकि होली अब पहले जैसी नहीं रही. अब गांवों के चौपालों पर होली गीत नहीं सुनायी पड़ते. हर जगह होली गीत के नाम पर फूहड़ गीत- संगीत प्रसारित किये जाते हैं. और तो और, होली गीतों के नाम पर बस, कोच, टेंपो, जीप एवं अन्य सवारी वाहन में बजाये जाने वाले ईल गाने बजाये जाने से महिलाओं को होली के एक सप्ताह पहले से ही आना-जाना मुश्किल हो जाता है.
न फाग का राग न ढोलक की थाप
पारंपरिक गीतों को भूल रहे लोग : आज से कुछ वर्ष पहले गांव से लेकर शहर तक पारंपरिक होली गीत बजाये जाते थे. जिससे लोगों में आपसी सद्भाव एवं भाईचारा बढ़ता था. मगर अब तो अधिकतर घरों में भी युवकों की टोली भी नये जमाने की भोजपुरी गीत पर झुमते है. खास कर ग्रामीण इलाके में भी अब पहले वाला माहौल नहीं मिल पाता है. होली जैसे पर्व पर उत्साह व उमंग की जगह खामोशी से लोग इस पर्व को बिता देते हैं.
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