अत्यंत पिछड़ी जाति में शामिल होंगे बिहार के तैलिक वैश्य!
वैश्य की यह बिरादरी तुलनात्मक रूप से कमजोर और गरीब है। आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर इस बिरादरी के लोग पिछड़े हुए हैं। हालांकि, कुछ अन्य जातियों की ओर से भी इस तरह की मांग की जाती रही है। लेकिन, आयोग तैलिक वैश्य के दावे की पड़ताल में अधिक दिलचस्पी दिखा रहा है। ज्ञापन में 1991 की जनगणना का हवाला दिया गया है। इसके मुताबिक वैश्यों में इस बिरादरी की तादाद सबसे अधिक है।
सुभाष चन्द्र
बिहार सरकार तैलिक वैश्य समुदाय को आरक्षण देने पर विचार कर रही है। इसके लिए बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण का काम किया जा रहा है। सियासी नफा-नुकसान का भी हिसाब लगाया जा रहा है। चुनावीसाल में राज्य सरकार कुछ और जातियों को अत्यंत पिछड़ी जातियों में शामिल कर सकती है। तैलिक वैश्य जाति को सूची में शामिल करने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। पिछड़े वर्गों के लिए राज्य आयोग को सर्वेक्षण का जिम्मा दिया गया है। सर्वेक्षण के लिए आयोग की टीम राज्य का दौरा कर रही है। छह चरणों में दौरा होना है। तीन चरण पूरा हो गया है। आकलन है कि अगर मौजूदा राज्य सरकार इन्हें अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल करती है तो चुनाव में सत्तारुढ़ दल को इसका लाभ मिलेगा।
असल में, 1990 में देश के 52.1 प्रतिशत ओबीसी समुदाय को वीपीसिंह सरकार ने केन्द्रीय नौकरियो में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था, तब गुजरात में मंडल आरक्षण के विरुध्ध आन्दोलन चलाने में अमित शाह, नरेंद्र मोदी, अशोक भट्ट, आनंदी बेन पटेल, नितिन पटेल की प्रमुख भूमिका रही थी। इस बात का पता 1990 में 18 साल के या 1990 में जन्मे और आज के 42 साल के या 24 के हो चुके ओबीसी युवाओं को नहीं है, जो 2014 तक आरक्षण के 27 प्रतिशत क्वोटा में प्रवेश लेकर पढाई कर चुके है और फेसबुक में नरेंद्र मोदी और संघ परिवार के अंधभक्त बने हुए हैं। संघ के कट्टर जातिवादी और तथाकथित हिंदूवादी ब्राह्मण नेताआें के नियंत्रण से चलती नरेंद्र मोदी सरकार ने ब्रिटिश शासन के समय के आरक्षित रही गौचर की लाखों एकर जमीने उद्योगपतिओं को कोडी के दाम पर बेच दी है। गुजरात में पशुपालन से जुड़े लोगों में 95 प्रतिशत लोग ओबीसी, एसटी और एससी के लोग है, जिन के पशुओ गौचर की जमीनों में से चारा पाते थे। गौचर की आरक्षित जमीने उद्योगपतियो को बेचकर गुजरात सरकार ने पशुपालकों को अधोगति की और धकेल दिया है। बिहार में भाजपाई कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी अति पिछड़ी जाति के हैं। मोदी जी खुद को नीच जाति का बताते हैं। लेकिन सरकारी नौकरियों में पिछड़ें,दलितों के लिए आरक्षण सीमा 69 प्रतिशत करने की बात हो या निजी क्षेत्र में आरक्षण देने की बात तो, वे चुप्पी साध जाते हैं। दूसरी तरफ भाजपा के ही रविशंकर प्रसाद और सीपी ठाकुर आरक्षण का खुलेआम विरोध करते हैं, जिसका खंडन भी मोदी जी नहीं करते हैं। आपको बता दें कि तेली समुदाय हिन्दू और मुस्लिम समाज दोनों मैं वैश्य (व्यापारी) वर्ण के द्वारा माना जाता है, हालांकि संभवत: एक कमया ह्लकम शुद्धह्व अन्य स्रोतों, तथापि, उन्हें शूद्र (किसान), के साथ वगीर्कृत जबकि साहू वैश्य वर्ण की तेली जाति से संबंधित उपनाम है। यह बनिया उप समुदाय या जाति के रूप में उल्लेख किया है। बंगाल में तेली वैश्य के रूप में गणना की जाति हैं। राजस्थान में तेली दावा क्षत्रिय स्थिति (योद्धा), हालांकि उनके पड़ोसियों वैश्य के रूप में उन्हें पहचाना जाना जाता है।
राज्य आयोग की सिफारिशों के आधार सवर्ण बिरादरी में शामिल रही गिरि एवं जग्गा जातियों को पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल किया गया है। तैलिक वैश्य समुदाय के लोगों ने आयोग को ज्ञापन दिया था। इसमें बताया गया था कि वैश्य की यह बिरादरी तुलनात्मक रूप से कमजोर और गरीब है। आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर इस बिरादरी के लोग पिछड़े हुए हैं। हालांकि, कुछ अन्य जातियों की ओर से भी इस तरह की मांग की जाती रही है। लेकिन, आयोग तैलिक वैश्य के दावे की पड़ताल में अधिक दिलचस्पी दिखा रहा है। ज्ञापन में 1991 की जनगणना का हवाला दिया गया है। इसके मुताबिक वैश्यों में इस बिरादरी की तादाद सबसे अधिक है। पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल कुछ मध्यवर्ती जातियों की तुलना में इनकी सामाजिक हालत अच्छी नहीं है। इनकी बड़ी आबादी छोटे-छोटे कारोबार से जुड़ी है। ए लोग परंपरागत तौर पर भाजपा के करीब माने जाते हैं।
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