बंदर पौधे की कुछ पत्तियां दूर करेंगी कैंसर

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संतोष कुमार. मुजफ्फरपुर.

‘बंदर’ पौधे की आठ-दस पत्तियां कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को समाप्त कर देंगी। यह खोज बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में पीजी बॉटनी विभाग ने किया है। विभाग के अध्यक्ष व जानेमाने प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार के आरंभिक शोध में यह कामयाबी मिली है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारत सरकार इस प्रोजेक्ट को वरीय वैज्ञानिको दे सकती है। उनके शोध के स्टेटस को देखते हुए दवा बनाने वाली कैडिला नामक कंपनी ने शोध में मिले अबतक के निष्कर्ष देने को कहा है। यह कंपनी डॉ. कुमार के शोध निष्कर्ष का पेटेंट कराकर कैंसर की दवा विकसित करना चाहती है।

हालांकि प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाने तथा इस सफलता को विवि के नाम करने के उद्देश्य से डॉ. कुमार ने कंपनी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। वे अपना रिसर्च प्रोजेक्ट कंपनी को नहीं देंगे। कुलपति डॉ. पंडित पलांडे ने इस कामयाबी के बाद यूजीसी को व्यक्तिग रूप से से रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए अनुदान देने का आग्रह किया है। वहीं केन्द्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने विभाग से इस बारे में पूरी रिपोर्ट के साथ आवेदन मांगँ है। बॉटनी विभाग से आवेदन भेज दिया गया है। पौधे में कैंसररोधी केमिकल की पहचान के लिए यूजीसी व डीएसटी तीन करोड़ रुपये तक उपलब्ध करा सकता है। कुलपति का प्रस्ताव यूजीसी ने विशेषज्ञों को अध्ययन के लिए सौंप दिया है। नए वित्तीय वर्ष में इसके लिए अलग से पैसा मिल सकता है।bandar patti

मधुमेह के इलाज में भी है कारगर
डॉ. कुमार ने बताया कि इस मेडिसिनल प्लांट से केरल, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक, झारखंड में मधुमेह का सफल इलाज हो चुका है। यह पौधा मूलत: अफ्रीकी है। महाराष्ट्र में इसे बंदर नाम से पुकारा जाता है, जो पूरे देश में प्रसिद्ध है। बोलचाल में कहीं-कहीं इसे इंसुलिन प्लांट भी कहा जाता है। वैसे बॉटनी की भाषा में यह पौधा वेरनोनिया डायवर्जेस कहलाता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के नैनो टेक्नोलॉजी लैब में हुई पुष्टि
डॉ. संतोष कुमार ने बताया पिछले साल विभाग में इस पौधे पर शोध के दौरान टिश्यू कल्चर में कुछ अलग तरह के रसायन मिले। दिल्ली विश्वविद्यालय के नैनो टेक्नोलॉजी विभाग की अध्यक्ष अमिता वर्मा से इस पर चर्चा हुई। वहां के लैब में कैंसर सेल पर इस प्लांट के सेल का प्रयोग किया गया। कैंसर का सेल पूरी तरह मर गया। इसके बाद लगातार कई प्रयोग किए गए। हर बार इस पौधे के रस के सेल ने कैंसर सेल को मारा। हालांकि इसकी औपचारिक पुष्टि गैस कोमेटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमीटर नाम की मशीन करेगी। मशीन से पौधे में मौजूद कैंसररोधी केमिकल का पता चल जाएगा। मशीन की खरीदारी के लिए यूजीसी व डीएसटी को प्रस्ताव दिया गया है। source- livehindustan.com






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