बंजर भूमि पर होगी मखाने की खेती, आत्मनिर्भर बनेंगे किसान

makhana
सीवान। अब जिले के किसान मखाना उत्पादन कर आर्थिक रूप से सबल बन सकेंगे. इसके लिए आत्मा के तत्वावधान में जिले के चयनित किसानों के बीच मखाने के पौधों का वितरण शुरू हो गया है. बेकार पड़ी बंजर भूमि पर किसान मखाना के साथ-साथ मछली का उत्पादन कर आत्म निर्भर बनेंगे.  इससे उन्हें आर्थिक मजबूती मिलेगी. कल तक जिस बंजर भूमि से एक कतरा भी अनाज नहीं उगता था, आज उसी भूमि से जिले के किसान एक साथ कई खेती करेंगे, जिसमें कृषि विभाग के आत्मा की अहम भूमिका रहेगी. विगत माह जिला कृषि प्रांगण में विभाग द्वारा प्रशिक्षण आयोजित कर  किसानों को मखाना उत्पादन के गुर सिखाए गए थे.  यह आयोजन नवा चार गतिविधि के अंतर्गत किया गया है. वितरण के दौरान किसानों को मखाना उत्पादन की जानकारी देते हुए मखाना अनुसंधान परियोजना पूर्णिया के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार ने बताया कि मखाना एक नकदी फसल है, जो करीब करीब पांच माह में तैयार हो जाती है और यह बेकार पड़ी जमीन व सालों भर जल मग्न रहनेवाली जमीन पर उगाया जा सकता हैं.  परियोजना उप निदेशक केके चौधरी ने किसानों से अपील करते हुए जिले में मखाना की खेती को बड़े स्तर पर शुरू करने की सलाह दी और कहा कि जिले के किसान आत्मा से जुड़ कर अपने को आत्म निर्भर बना रहे हैं. पहले चरण में लगभग 10 हेक्टेयर में खेती होगा, जो पहली बार सीवान जिले में हो रही है.
क्या है स्थिति: जिले में एक बड़ा भू-भाग सालों भर जलजमाव के कारण अनुपयोगी हो चुका है, जहां कोई कृषि कार्य नहीं हो पाता और साथ ही कई किसानों की अधिकतर जमीन जलमगअ है,  जिसके कारण वे भुखमरी के कगार पर हैं. वे जैसे-तैसे जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. कृषि विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में पांच हजार  हेक्टेयर से अधिक जमीन इस समस्या से प्रभावित है.
 क्या है योजना: जिले में इस अनुपयुक्त जमीन पर मखाना उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना है, जिससे उनकी समस्या का समाधान संभव होगा और वे आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे. मखाना उत्पादन के साथ ही इस प्रस्तावित जगह में मछली उत्पादन भी किया जा सकता है. मखाना उत्पादन से जल कृषक को प्रति हेक्टेयर लगभग 50 से 55 हजार रुपए की लागत आती है. इसकी र्गुी बेचने से 45 से 50 हजार रुपए का मुनाफा होता हैं. इसके अलावा लावा बेचने पर 95 हजार से एक लाख रुपएा प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ होता है. इसके अतिरिक्त मछली उत्पादन व मखाने की खेती एक-दूसरे से अन्योनाश्रय  रूप से संबद्ध है, जो संयुक्त रूप से आय का एक बड़ा स्नेत है. मखाना की खेती में एक महत्व पूर्ण बात यह है कि एक बार उत्पादन के बाद वहां दुबारा बीज डालने की जरूरत नहीं होती है.
क्या कहते हैं अधिकारी
सिवाल जिला के मत्स्य पदाधिकारी मनीष मनीष श्रीवास्त्व का कहना है कि सरकार की इंद्र धनुषीय क्रांति को साकार करने के लिए यह योजना सीवान जिले के मत्स्य कृषकों बीच प्रायोगिक तौर पर प्रारंभ की जा रही है. इस योजना से लाभान्वित होने के पश्चात अन्य मत्स्य कृषकों के बीच भी इसका व्यापक प्रचार- प्रसार किया जाएगा, जिससे मत्स्य कृषकों में समृद्धि आएगी.  आत्मा परियोजना के निदेशक शंकर झा ने बताया कि आत्मा की यह महत्वाकांक्षी योजना है. जिले में पहली बार मखाना की खेती कराई जा रही है. अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो इससे और किसानों को जोड़ा जाएगा. किसान तालाब में एक साथ दो-दो खेती कर अपने को आत्म निर्भर बनाएंगे. अभी 10  से अधिक किसानों को चयनित किया गया है.






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