दस साल से धूल फांक रही भोजपुरी की फाइल

bhojpuri bihar katha

आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विषय लंबित, विश्व में चार करोड़ से ज्यादा लोग बालते हैं भोजपुरी, नेपाल, मारिशस, श्रीलंका, फिजी, थाईलैंड, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो समेत भारत के पूर्वाचल, झारखंड, दिल्ली सहित कई शहरों में हैं भोजपुरी भाषी

बिहार कथा, नई दिल्ली।

सीताकांत महापात्र समिति की रिपोर्ट पेश किए जाने के 10 वर्ष गुजरने और संसद में पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के आश्वासन के बावजूद भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं किया जा सका है, साथ ही विभिन्न भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने या नहीं करने का विषय सरकार के समक्ष लंबित है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत गृह मंत्रालय के मानवाधिकार प्रभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आठवीं अनुसूची में अधिक भाषाओं को शामिल करने से संबंधित प्रस्तावों एवं अभ्यावेदनों की जांच करने और उनका अंतिम रूप से निपटाने करने के लिए विषय परक मानदंडों का सेट तैयार करने के लिए 2003 में सीताकांत महापात्र के नेतृत्व में भाषा विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई थी। समिति ने सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट 2004 में पेश कर दी थी। गृह मंत्रालय ने बताया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने या नहीं करने के संबंध में एक समान मानदंडों का सेट तैयार करने से संबंधित मामला अभी विभिन्न पक्षों के समक्ष विचाराधीन है। आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, आठवीं अनुसूची में अधिक भाषाओं को शामिल करने संबंधी लंबित ज्ञापनों पर मानदंडों का सेट तैयार होने और इसे अंतिम रूप से अनुमोदन मिलने के बाद ही इस पर (भोजपुरी को शामिल करने) विचार किया जा सकता है। यह मामला अभी सरकार के पास लंबित है और सरकार समिति की सिफारिशों पर विचार कर रही है। नेपाल, मारिशस, श्रीलंका, फिजी, थाईलैंड, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो समेत भारत के पूर्वाचल, झारखंड, दिल्ली सहित कई अन्य क्षेत्रों में चार करोड़ से अधिक लोग भोजपुरी बोलते हैं।
दिल्ली स्थित आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद ने गृह मंत्रालय से यह पूछा था कि भोजपुरी समेत कुछ अन्य भारतीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने या नहीं किए जाने के संबंध में सीताकांत महापात्र समिति की रिपोर्ट पर अब तक क्या पहल की गई है और वर्तमान स्थिति क्या है। गृह मंत्रालय ने बताया कि विभिन्न भाषाओं को शामिल किए जाने के संबंध में भारतीय संविधान में 92वें संशोधन के बाद कोई अन्य संशोधन नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है कि 2012 में भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिन करने से जुड़े एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि वह इस बारे में पेश रिपोर्ट पर विचार करने के बाद जल्दी कोई फैसला करेंगे।
सूचना के अधिकार के तहत लोकसभा सचिवालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1969 के बाद से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में लोकसभा में 18 निजी विधेयक पेश किए गए जिसमें से 16 अवधि समाप्त होने के कारण निरस्त हो गए जबकि राजीव प्रताप रूडी के मंत्री बनने के कारण उनका निजी विधेयक लंबित सूची से हटा दिया गया। अभी ओम प्रकाश यादव का निजी विधेयक सदन में लंबित है।
मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि यूनीसेफ ने 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस घोषित किया है और यह दिवस हमारे देश में मनाया भी गया लेकिन भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा नहीं होने के कारण यह उपेक्षित रही । सरकार ने देशी भाषाओं के डिजिटलीकरण का प्रस्ताव किया है लेकिन इसका लाभ केवल अधिसूचित 22 भाषाओं को मिलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार सदन में कई बार भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में आश्वासन दे चुकी है। इसलिए इसमें देरी नहीं करके तत्काल सकारात्मक निर्णय करना चाहिए।






Related News

  • क्या बिना शारीरिक दण्ड के शिक्षा संभव नहीं भारत में!
  • मधु जी को जैसा देखा जाना
  • भाजपा में क्यों नहीं है इकोसिस्टम!
  • क्राइम कन्ट्रोल का बिहार मॉडल !
  • चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें
  • ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाही
  • कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
  • स्वरा भास्कर की शादी के बहाने समझे समाज की मानसिकता
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com