कौन सा गुल खिलाएंगे ओम प्रकाश सिंह
बिहार कथा/गोपालगंज
पिछले दिनों मंगल पांडे से ओमप्रकाश सिंह की गोपनीय मुलाकात अखबार के एक कॉलम में आई और यहां फेसबुक पर वायरल हो गई। पर जो खबर नहीं छपी वह जानिए….मंगल पांडे ने अनेक लोगों को टिकट का आश्वासन दिया है, वे चुनाव तक संगठन में अभी इसी पद पर बने रहेंगे, यह दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद तय होंगे….बिहार के भाजपा संगठन में भारी फेरबदल होने वाला है। लिहाजा, मंगल बाबा से ओमप्रकाश सिंह के मिलन का राजनीतिक भू्रण तैयार होगा भी या नहीं, अभी इसी पर संशय है। ओमप्रकाश सिंह पिछला चुनाव तब के मीरगंज विधानसभा से राजद से लड़े थे। तब कांग्रेस के उम्मीदवार बाबुद्दीन ने राजद के मुस्लिम वोट अपने खाते में ले लिए, इधर साधु यादव के नेतृत्व में कुछ वोट यादवों के कट गए। पिछड़ा बाहुल्य इलाके में ओमप्रकाश सिंह बुरी तरह शिकस्त खा गए। लेकिन राजनीतिक की धरातल पर उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। पिछले चुनाव में परिसीमन ने उनकी राजनीतिक तैयारी का गणित बिगड़ गया था। तब के मीरगंज विधानसभा के करीब दर्जन भर पंचायत गोपालगंज विधानसभा में चले गए। मन मासोस कर रह गए। जदयू का दामन थाम कर गोपालगंज में तैयारी शुरू की। लेकिन तैयारी का पूरा श्रेय निजी रूप से पाने के लिए कहीं जदयू के बैनर का उपयोग नहीं किया। भाजपा गंठबंधन टूटने के बाद इन्हें फिर आस जगी। गोपालगंज में जागो रैली एक तरह से शक्ति प्रदर्शन थी। इस रैली की ताकत से वे अपनी जमीनी साख अभी मजबूत ही कर रहे थे कि इधन जदयू-राजद ने हाथ मिला लिया। अब महाविलय को लेकर अटकलें तेज हैं। यदि जदयू गठबंधन में भी गोपागंज की सीट जदयू को मिले तो भी सत्ता का स्वाद चख चुके राजद के रियाजुल हल के निर्दलीय मैदान में होने की पूरी संभावना बनती है। लिहाजा, ये फिर वैसे ही च्रक्रव्यूह में फंस जाएंगे जैसे मीरगंज-हथुवा विधानसभा में फंस कर शिकस्त खा गए थे। गोपालगंज में भाजपा से टिकट की सियोरिटी पर ही ये पाला बदलेंगे, लेकिन भाजपा में राह आसान नहीं होगी। गोपालगंज की सीट को लेकर पहले से ही यहां भाजपा में जबरजस्त गुटबाजी है। यदि सुभाष सिंह को टिकट मिला तो अनुप श्रीवास्तव बागी नहीं होंगे, इसकी संभावना कम बनती है। यदि सुभाष सिंह का टिकट कटता है और किसी को मिलता है तो सुभाष सिंह उसकी जीत के लिए जी जान लगा देंगे इसकी गारंटी भी नहीं है। इन तमाम समीकरणों में ओमप्रकाश सिंह को कहीं से टिकट मिले या न मिले…ओमप्रकाश सिंह अपनी निजी तैयारी के दमखम पर गोपागंज के सियासी समर में जरूर उतरेंगे। उधर रियाजुल हक को माय वोट बैंक दिख रहा है तो ओमप्रकाश सिंह को रियाजुल के सामने सीटिंग एमएलए की एंटीइंक्बेशी और भाजपा की गुटबाजी में अपनी राह सहज लग रही है…पर हालात तो कत्ल की रात में भी बदल जाते हैं।
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