ऐतिहासिक गोलघर की भीतरी दीवारें कराएंगी बिहार के इतिहास से परिचय
कुणाल दत्त/पटना।
पटना का वही ऐतिहासिक गोलघर, जिसके उच्च्पर से गंगा का विहंगम दृश्य दिखता है, जल्द ही एक किस्सागो के रूप में नजर आएगा। दरअसल इस ऐतिहासिक स्थल की भीतरी दीवारों पर पहली बार लेजर शो के माध्यम से पटना और बिहार के इतिहास की कहानी दिखाई जाएगी। इस इमारत को लगभग 230 साल पहले अकाल के समय में ब्रिटिश सेना के लिए अनाज भंडारण करने के लिए बनाया गया था। अभी तक इसके परिसर में फव्वारों के जरिए एक लेजर शो होता है लेकिन, अब पहली बार एक लेजर शो इसकी भीतरी दीवारों पर दिखाया जाएगा। यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या को देखते हुए बिहार सरकार ने फैसला किया है कि यह लेजर शो अब दिन के समय दिखाया जाएगा, जो कई कालखंडों से गुजरे बिहार और उसकी राजधानी की कहानी बयां करेगा। बिहार राज्य पुरातत्व विभाग के निदेशक अतुल कुमार वर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया, पहली बार हम गोलघर की ऐतिहासिक दीवारों पर एक लेजर शो का आयोजन किया जाएगा । हम फिलहाल इसके परिसर में एक फव्वारों का प्रयोग करते हुए एक लेजर शो आयोजित करते हैं लेकिन, यह नया शो दर्शकों के लिए एक नया अनुभव होगा। उन्होंने बताया कि लगभग सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और इसकी शुरुआत के लिए विभाग को एक अच्छी तिथि की तलाश है। अप्रैल के मध्य तक यह शो शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि विभाग ने विशेष तरह की झुकने वाली कुसिर्याें का प्रबंध किया है लेकिन, इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि इस ऐतिहासिक इमारत पर ध्वनि का क्या प्रभाव पड़ेगा । उन्होंने बताया कि यहां नियमित तौर पर कोई प्रदर्शन नहीं होगा। दर्शकों को दीवारों पर चित्र देखने होंगे और हेडफोन पर संपूर्ण टीका सुननी होगी।
गोलघर की इमारत में आवाज गूंजती है, इसलिए बिहार सरकार ने इस बात के सारे इंतजाम किए हैं जिससे कि इमारत को कोई भी नुकसान न पहुंचे। वर्मा ने बताया, हमने इमारत के अंदर संरक्षण कार्य कर लिया है। ऐहतियातन एक शो के लिए एक बार में केवल 25 दर्शकों को ही अंदर जाने की इजाजत होगी। यह शो हिंदी और अंग्रेजी दो भाषाओं में होगा और इसकी अवधि 20 मिनट होगी । इसमें बिहार की मौर्य काल से लेकर ब्रिटिश काल तक की दास्तां को प्रदर्शित किया जाएगा। गांधी मैदान के पास स्थित इस इमारत का निर्माण गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के समय कैप्टन जॉन गासर््िटन की देखरेख में हुआ था।
इसकी ऊंचाई 29 मीटर है और इस पर गोलाकार में सीढ़ियां बनी हुई हैं जिससे कुली अनाज लेकर ऊपर जाते थे और वहां से एक छेद के माध्यम से इसमें अनाज डालते थे।
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