बिहार का एक गांव, जहां आईएएस की पत्नी बनी मुखिया, तो बदलने लगी है गांव की तस्वीर

दिल्ली में आईएएस के रूप में पदस्थापित अरूण कुमार जायसवाल की पत्नी ॠतु जायसवाल

बड़ी बहन ऋतु जायसवाल सीतामढ़ी के गांवों की नई इबारत लिख रही हैं!!
अरुण कुमार
दिल्ली में आईएएस के रूप में पदस्थापित अरूण कुमार जायसवाल की पत्नी ॠतु जायसवाल वर्तमान में बिहार के सीतामढ़ी के सोनवर्षा प्रखंड के सिंघवाहिनी पंचायत से मुखिया हैं। अपने प्रयास से ऋतु ने लोगों को समझाया कि अपना वोट मत बेचो। मुखिया को पंचायत में शौचालय व पानी की व्यवस्था करनी होती है इसलिए उन्हें चंद रुपयों की लोभ में वोट नहीं बेचना चाहिए। ऐसा करने से वे सुविधाओं से वंचित हो जाते थे और आजीवन बीमारी के शिकार होते थें। लोगों ने भी बात को समझा और उन्हें समर्थन देकर भारी मतों से जीत दिलाया।उनके प्रयास से आजादी के बाद पहली बार बिजली आई। कुछ एनजीओ की मदद से बच्चों के लिए ट्यूशन क्लास शुरू करवाई गई। असर यह हुआ कि इस बेहद पिछड़े गांव की 12 लड़कियां एक साथ मैट्रिक पास हुई हैं। गांव के लोगों के कहने पर ही उन्होंने चुनाव लड़ा और तमाम जातीय समीकरणों के बावजूद भारी मतों से जीत गईं।
वह कहती हैं कि जिस संकल्प को लेकर वे मुखिया का चुनाव लड़ी हैं उसे वह हर हाल में पूरा करेंगी। अब गांव में रहकर ही गांव की तस्वीर बदलेंगी। उन्होंने बताया कि उनके गांव में ना तो चलने के लिए सड़क है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी। लोगों को शौचालय के बारे में भी पता नहीं था कि शौचालय क्या होता है। गांव के त़करीबन अस्सी प्रतिशत लोग आज भी सड़कों पर शौच के लिए जाते हैं। बिजली सहित तमाम मूलभूत सुविधाओं से लोग अब भी कोसो दूर हैं।
वह कहती हैं कि मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के बाद विकास के काम पर ध्यान देंगी। विकास के लिए उन्होंने कृषि विभाग से बात किया है। विभाग यहां के लोगों को ट्रेंनिंग देगा जिससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यहां की भूमि कृषि योग्य है पर यहां के लोग अब बाहर जा रहे है कमाने के लिए। गांव में सिर्फ औरतें और बुजूर्ग हैं।
बिजली विभाग से बात कर एक गांव में बिजली लाने में सफल हुईं। अपने गांव की फोटो खींच एक डॉक्युमेंटरी बनाई और एनजीओ को दिखाया। फिर वह काम करने के लिए तैयार हो गएं। वे बताती हैं कि दो साल में कई एनजीओ आए और गांव की महिलाओं और लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दिलाया गया। यह सारा फंड एनजीओ ही वहन करते थे। करीब दो साल पहले नरकटिया के बच्चों के लिए सामुहिक रूप से दो ट्यूटर लगवाए। वे कहती हैं गांव की हालत अब सुधर रही है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
सामाजिक कार्य में रुची उन्हें पहले से थी पर गांव को देख रुची और ज्यादा बढ़ गया। वे कहती हैं कि इस गांव से एक लगाव सा हो गया। सिंघवाहिनी पंचायत में नरकटिया को मिलाकर 6 गांव हैं। नरकटिया की आबादी 2300 के आसपास है। बाकी सभी गांव इससे बड़े हैं। इससे पहले जितने भी मुखिया थे उन्होंने कुछ काम नहीं किया है। इस बार भी बहुत लोगों ने मुखिया पद के लिए पर्चा भरा था। चुनाव में उनको यहां के लोगों का तो साथ मिला ही साथ ही उनके पति का भी बहुत सहयोग रहा।
क्षेत्र में उनके द्वारा किये अच्छे कामों, प्रयासों और लोकप्रियता का ही नतीजा था कि उन्होंने एक शांति रैली निकाली जिसका मकसद था लोगों को जागरुक करना जिसमें छह हजार लोग शामिल हुए जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि इस रैली में इतने लोग शामिल होंगे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उस रैली में ऐसी महिलाएं भी शामिल हुईं जो कभी घर से बाहर कदम भी नहीं रखी थीं। वह कदम से कदम मिलाकर चल रही थीं। यह उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वे मुखिया का चुनाव दो हजार वोटों से जीतीं। यह जीत उन दो हजार लोगों के बदलते हुए समाज की जीत थी।
ॠतु जयसवाल ने अपनी पढ़ाई वैशाली महिला महाविद्यालय, हाजीपुर से किया है। उन्होंने बीए की डीग्री अर्थशास्त्र में ली। शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखा। उनके दोनों बच्चे बैंगलोर के एक रेसीडेंशियल स्कूल में पढ़ते हैं। इसके लिए उनकी बेटी अवनि जो 7वीं में पढ़ती है उसने उनका बहुत सहयोग किया ताकि वे अपना ज्यादातर वक्त गांव में ही बीता सकें। वह अपने बेटी के बारे में कहती है कि जब उन्होंने अपनी बेटी से बात की तो वह बोली कि मैं तो होस्टल में रह लूंगी और आप बहुत सारे बच्चों की जिंदगी बदल पाएंगी। बेटी की इस बात से उन्हें बहुत हौसला मिला।
शहर की सारी सुख सुविधाओं को छोड सिर्फ समाज सेवा के मकसद से गाँव की तस्वीर बदलने में लगी है। इसकी जितनी भी तारीफ किया जाए कम है। लोग तो सफलता मिलने के बाद गाँव को भूल ही जाते है, शहर को अपना घर बना लेते है और गाँव से अपना रिश्ता ही तोड लेते हैं मगर ऋतु जायसवाल ने न सिर्फ अपनेपति और परिवार का नाम रौशन किया बल्कि अन्य लोगों के लिए भी एक आदर्श अस्थापित करने का काम किया है। हमें इन पे गर्व होना चाहिए। (अरुण कुमार बिहार के हैं व दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं. यह रिपोर्ट/आालेख उनके फेसबुक टाइल लाइन से साभार)






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