हथुआ दवा व्यावसायी हत्याकांड : सरवर ने सतीश पांडे और गुडडु राय के पंचायती फैसले को मानने से किया था इनकार!

सबके लिए सज्जन रहे सरवर अली को किस किए की मिली सजा?
पुलिस की जांच पुरी, खुलासा जल्द
विशेष संवाददाता, हथुआ/गोपालगंज।  हथुआ बाजार के शनिचरा बाबा स्थित दवा व्यवसायी सरवरअंसारी उर्फ भोली हत्याकांड की गुत्थी पुलिस अपने हिसाब से करीब-करीब सुलझा चुकी है। हथुआ अनुमंडल के आरक्षी पदाधिकारी (डीएसपी) की मानें तो इस केस की जांच करीब-करीब पूरी हो चुकी है। आरोपी भी चिन्हित कर लिए गए हैं। आजकल में मामले का खुलासा भी कर दिया गया है। हालांकि अभी पुलिस ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए कि आरोपी कौन है? हत्या का आरोपी रिश्ते नाते का है या बाहर का यह भी स्पष्ट नहीं बता रही है, लेकिन हत्या जमीन विवाद में होने की बात जरूर कही है। सरवर उर्फ भोली हत्याकांड के बाद से हथुआ में तरह-तरह की अफवाहें भी हैं। अफवाहों पर आधारित मीडिया में सतही खबरें भी आर्इं। आजकल में पुलिस खुलासा चाहे किसी भी बात को लेकर करें, लेकिन इस हत्याकांड की वजह जमीन है तो पुलिस की जांच में कई बड़ी चूक होने की पूरी गुंजाईश दिख रही है। इसके कई कारण हैं। कारण का जंजाल ऐसा है कि एक लाइन में बात नहीं समझी जा सकती है।
जिस जमीन के लिए हुई हत्या
जिस जमीन को लेकर हत्या के कयास लगाए जा रहे हैं, वह हथुआ बाजार से सटे गांव मनीछापर गांव के उत्तर पश्चिम के कोने की सड़क के किनारे की जमीन है। यह जगह बाजार से बिलकुल सटे होने के कारण बेहद महत्वपूर्ण और महंगा होना स्वाभाविक है। छह कट्ठे के पूरे जमीन के टुकडे के कई हिस्सेदार हैं। मिली जानकारी के अनुसार इन्हीं हिस्सेदारों में से एक ने अपनी जमीन जिरादेई के अभिषेक राय से बेची। यह अभिषेक राय गोपागंज के हिस्ट्री सिटर अपराधी गुड्डू राय का भांजा है। बताया जाता है कि इस जमीन की सौदेबाजी में विचौलिए की भूमिका हथुआ के कोईरोली रोड पर सरकारी स्कूल के पास और पश्चिम मठिया के पहले एक जिम संचालित करने वाले सुरेंद्र सिंह ने निभाई थी। बताया जाता है कि इस जमीन में सारा पेंच एक बहन के हिस्से को लेकर था।
रकबे से ज्यादा जमीन हथियाने का मामला
गुड्डू राय के भांजे ने जो जमीन लिखाई, उसे कब्जा करने के लिए गुड्डू राय की ओर से हर संभव कोशिश की गई। विवाद लिखित जमीन के रकबे से ज्यादा के कब्जे के प्रयास को लेकर था। कुछ वर्ष पहले गुड्डू राय की ओर से इस जमीन बाउंड्री करने की कोशिश की गई थी। तब दिवंगत भोली उर्फ सरवर ने आपत्ति दर्ज कराई। तत्कालीन डीएसपी से मिल कर न्याय की गुहार लगाई थी। डीएसपी ने मामले में हस्तक्षेप कर बाउंड्री बनवाना रूकवा दी थी। मामला कोर्ट में था।
सतीश पांडे और गुड्डु राय का फैसला मानने से किया था इनकार
अभिषेक राय और गुड्डू राय की ओर से जमीन को कब्जा करना जरूरी था। लिहाजा डीएसपी के बदलने के बाद और हथुआ थाने में सजातीय थाना प्रभारी प्रियव्रत के आने के बाद से इनके हौसले बुलंद हुए। लिहाजा, जमीन पर कब्जा करने का प्रयास फिर तेज हुआ। इस बार पंचायत बैठी। इस पंचायत में सतीश पांडे और गुड्डु राय ने मिल कर विवादित जमीन पर जो फैसला सुनाया था, उसे सरवर उर्फ भोली ने इनकार कर दिया था। सरवर अंसारी ने स्पष्ट कहा कि जब मामला कोर्ट में है तो फैसला कोर्ट का ही मान्य होगा। इस पंचायत के फैसले के इनकार के बाद सरवर की हत्या पूरी तरह से पंचायत कराने वाले को कटघरे में खड़ा करती है। इसको लेकर जब हथुआ थाने एक दारोगा से बातचीत की गई तो उसने भी पंचायत होने बात की पुष्टि की, लेकिन कुछ ज्यादा होने की बात से इनकार कर दिया। लेकिन दरोगा ने यह बात दमखम से कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि हत्या जमीन विवाद को लेकर ही हुआ है। हथुआ अनुमंडल के डीएसपी भी यह स्वीकारते हैं कि पंचायत हुई थी। लेकिन साथ ही डीएसपी का यह भी कहना है कि पुलिस ने कागजी प्रमाणों पर ज्यादा फोकस किया, इसलिए इस पंचायत को लेकर गुड्डू राय और सतीश पांडे से कोई पूछताछ नहीं की गई। मतलब साफ है कि जिस मामले के तार प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष दो प्रभावशाली हिस्ट्रीशीटरों से जुड़ा हो, वहां पुलिस आसानी से हाथ कैसे डाल सकती है?
कौन है गुड्डु राय
जिस समय गोपालगंज में सतीश पांडे के बाहुबल की तूती बोलती थी, उसी जमाने में भरी जवान में गुड्डू राय ने अपराध की दुनिया में कदम रखा था। हालात ऐसे बदले की वह अपराध की दुनिया में सतीश पांडे से भी बड़ा अपना कद बनाना चाहता था। कम की समय में इतना कुख्यात हो गया कि कोर्ट ने उसके खिलाफ शूट एंड साइट यानी सीधे एनकाउंटर का वारंट जारी कर दिया था। नब्बे के शुरुआती दशक में गोपालगंज में पदस्त एक मुस्लिम एसपी ने अपनी टीम के साथ गुड्डू राय को बरसात के दिनों में घेर लिया था। खूब गोलिया चली। गुड्डू राय घायल अवस्था में सामने पड़ा था। लेकिन एसपी उसकी पहचान नहीं कर पाए। शिनाख्त के लिए उन्होंने तब के मीरगंज के थाना प्रभारी (जो गुड्डू राय की जाति के थे) से पूछा, तो उसने पहचानते हुए भी पहचानने से इनकार कर दिया। वहीं एंनकाउंटर में मारने वाले एसपी के हाथों गुड्डू राय की जान बच गई। जेल से बाहर आने के बाद हालात काफी बदल चुके थे। नीतीश कुमार से चुस्त सुशासन ने अनेक कुख्यातों के तेवर नरम कर दिए थे। लिहाजा, कमाई के लिए दूसरे रास्ते तलाशने पड़े। जानकार बातते हैं कि गुड्डू राय और सतीश पांडे भले ही किसी जमाने में जानी दुश्मन हुआ करते थे, लेकिन अब मजबूती के साथ एक हैं। स्थानी भाषा में कहते तो सतीश पांडे और गुड्डू राय की दोस्ती भर ठेकुन क्या भर ढांड़ तक हो गई है। इस दोस्ती का कारण पूछे जाने पर हथुआ थाने के एक दारोगा का कहना है कि यह दोस्ती ट्रेन के रेक से आने वाली गिड्डी के धंधे के कारण हुई है। इस धंधे के बड़े रहस्य है, वह फिर कभी।
अब यह है सवाल?
यदि जमीन विवादस्पद थी और मामला कोर्ट में था तो क्या पुलिस ने खरीददार पक्ष से पूछताछ किया?
-जिन बहुबलियों के फैसले को हर कोई डर और भय से मानता है, उसे सरवर ने उसी जमीन विवाद में उनके पंचायती फरमान को मानने से इनकार किया था। पुलिस ने पंचायत में शामिल लोगों की जानकारी क्यों नहीं जुटाई और उनसे पूछताछ क्यों नहीं की?
-क्या पुलिस ने जमीन में सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले सुरेंद्र सिंह से भी जानकारी जुटाने की कोशिश की?
-क्या जमीन विवाद में हत्या से पूर्व बाहुबलियों की पंचायत की पंचायत के फैसले के इनकार की सजा सरवर अंसारी को मिली है?
-कही पुलिस असली मुजरिम के बजाय छोटे गुर्गों को पकड़ कर केस की इतिश्री कर अपनी पीठ तो नहीं थपथपाना चाहती है?






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