गोपालगंज: मर्डर हुआ टीपी सिंह का और खौफ में आ गए सुनील सिंह!

विशेष संवाददाता. बिहार कथा. गोपालगंज.गोपालगंज जिले के नगर थाना क्षेत्र में जमीन विवाद में अपराधियों ने क्षेत्र में दबंग माने जाने वाले पूर्व जदयू नेता टी.पी. सिंह उर्फ तेजप्रकाश सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। लेकिन टीपी सिंह भी धूल के धुले नहीं थे. एक जमाने में वे भी अपराथ की दुनिया में शातिर खिलाडी रहे हैं. दर्जनों अपराधिक केस टीपी सिंह पर रहे हैं.जिस जमीन विवाद में हत्या हुई है वह जमीन विजय लाल की थी, जिसे तेज प्रकाश ने भी ​लिखवाया ओर उसके बाद उसी जमीन के किसी अन्य हिस्सेदार से एक और पक्ष ने लिखवाया. इस मर्डर कांड को लेकर पूरे जिले में तरह तरह की चर्चा है. इस हत्याकांड का कितना दूर तक असर हुआ है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले के पूर्व विधान पार्षद सुनील सिंह गोपालगंज पुलिस अधीक्षक को लिखित में ओवदन देकर सुरक्षा की गुहार लगाने वाले हैं. आखिर ऐसी कौन सी बात है कि कि टीपी के मर्डर के बाद पूर्व पार्षद सुनील सिंह सहम गए हैं. आइए इसके बारे में थाोडी पडताल करते हैं.टीपी सिंह का संपर्क सुनील सिंह से भी रहा है. इसलिए यह मर्डर एक प्रतिद्वंदी को चुनौति के ​लिए अलर्ट् का भी संदेश हो सकता है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार जिस जमीन विवाद में हत्या हुई है, वह इतना भी बडा नहीं था कि बात मर्डर तक आ जाए. करीब महीने भर पहले दोनों पक्ष इस विवाद को लेकर थाने में भी पहुंचे थे. लेकिन जिस तरह मर्डर हुआ है, उससे देख कर लगता है कि इस पूरे प्रकरण में नजर कहीं और निशाना कही और जैसी बात है. टीपी सिंह के घर वालों ने हत्या के काफी देर बात तक थाने में एफआईआर दर्ज नहीं कराई. पुलिस को सूचना देरे मिली. लेकिन पुलिस के बयान में परिजनों ने किसी का नाम नहीं ​लिया, हां, टीपी सिंह के बेटे निकेश ने स्थानीय मीडिया को बताया कि पूरा मामला जमीन विवाद का है. निकेश ने कुख्यात भीखू चौधरी पर आरोप लगाते हुए इस हत्या के लिए प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार करार दिया है. उसने कुख्यातों में नारायण श्रीवास्तव, उपेंद्र पांडेय सहित सुरेश यादव शामिल हैं. टीपी सिंह को अपने मर्डर का अंदेशा पहले ही था, उन्होंने एक सूची लिख कर अपने बेटे को दी थी और कहा था कि यदि जमीन विवाद में उनका मर्डर होता है तो बयाान में इन नामों को बताएं.

फ़ाइल फ़ोटो

वहीं सूत्रों का यह भी दावा है कि जिले के एक प्रभावशाली बाहुबली कि ओर से निकेश पर यह दबाव बनाया गया है कि सुरेश यादव का नाम वह अपने पुलिया बयान में न लें. वहीं जब बिहार कथा ने नगर थाना प्रभारी संजय कुमार से बातचीत किया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसमें अभी तक सुरेश यादव आदि गैंग के हाथ होने के कोई सुराग हाथ नहीं लगे हैं. उन्होंने कहा है कि परिजनों से निर्भय होकर अपराधियों के नाम लेने के लिए कहा गया है, लेकिन अभी तक उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है. लेकिन अपराधिक जगत के सूत्रों का कहना है कि इस हत्याकांड में सुरेश गैंग ने यह संदेश दिया है कि अभी भी जिले में उसका प्रभाव कम नहीं हुआ है.यही नहीं जिस तरह से हत्या की गई है, वह अचानक ही नहीं हुआ है. यह पूरी योजना के तहत हुआ है. टीपी के परिजनों ने कहा कि जब टीपी सिंह को मारने के लिए सबसे पहले अपराधियों ने गोलीबारी कर दहशत का माहौल कायम किया. अपने घर में मौजूद टीपी सिंह जब उसका जायजा लेने अपने छत पर पहुंचे, उसी वक्त अपराधियों ने उन पर गोली चला दी. इस तरह का मर्डर पेशेवर अपराधी ही करते हैं.
जानकार बताते है कि जब से सुरेश यादव जेल से बाहर हैं, पैसे ही हवस बढ गई है. विवादित जमीनों को लिखवाना और उसे कब्जा करना मुख्य पेशा बन गया है. लेकिन सवाल यह है कि जमीन विवाद में इस हत्या के बाद पूर्व पार्षद सुनील सिंह क्यों सहम गए. कहानी कुछ यू हैं. ढाई दशक पहले गोपालगंज में मुन्ना सिंह का मर्डर हुआ था. हत्याकांड के लिए सुरेश यादव को एक लाख रुपए और एक रायफल की सुपारी दी गई थी. लेकिन हत्या के बाद सुरेश यादव को सुपारी की रकम एक लाख तो दी गई, लेकिन उसे रायफल नहीं दी गई. वही टीस आज भी कही न कहीं सुरेश यादव को दिल में है. अब सवाल यह उठता है कि क्या मुन्ना सिंह के मर्डर की सुपारी क्या सुनील सिंह ने दी थी, यह पूछने पर पूर्व पार्षद कहते हैं कि मर्डर में उनका कोई हाथ नहीं था. सुनील सिंह का कहना है कि उस मर्डर कांड में उल्टे उनके फपर नामजद एफआईआर हुआ था. करीब 15—16 साल की लंबी कानूनी लडाई के बाद सुनील सिंह इस हत्या कांड से बरी हो गए. लेकिन सूत्र बताते हैं कि मुन्ना सिंह का मर्डर में सुरेश यादव मोहरा बन गए. उनके दिल में यही टीस आज भी है.
सुत्रों का यह भी दावा है कि सुरेश यादव सुनील सिंह पर मर्डर के कई मौके चूक गए हैं. एक बार सुनील सिंह का लोकेशन मिलने पर गोपालगंज के हजियापुर मोड के गांधी चौक पर सुरेश यादव एके 47 के साथ शॉल ओढकर सुनील सिंह के गुजरने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन सुनील सिंह ही यह किस्मत थी कि ऐन वक्त पर सुरेश सिंह के सामने से एक ट्रक गुजरा ओर सुनील सिंह की गाडी ओवरटेक करते हुए निकल गई और वे बच गए. एक अन्य सूत्र का यह भी दावा है कि सुनील सिंह पूर्व सांसद साधु यादव से यह आग्रह कर चुके हैं कि सुरेश यादव से कंपरमाइज करवा दें.
जब से सुरेश यादव बेल लेकर जेल से बाहर हैं, तब से सुनील सिंह निर्भय होकर न ​गोपलगंज में घुमते हैं और नहीं घर के आसपास खुले में घुमते हैं. सुनील सिंह निर्भय होकर क्यों नहीं घुमते हैं, यह पूछने पर उन्होंने कहा—अपराधियों से किसे डर नहीं लगता है. जिले में राजनीतिक गलियारोंं में कभी यह भी चर्चा होती है कि अपराध की दुनिया के बाद सुरेश यादव की नजर अब राजनीति के चकाचौंध की ओर है.उनकी नजर गोपालगंज और बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र पर है. यदि अगामी विधानसभा चुनाव में यदि सुरेश यादव चुनावी मैदान में ताल ठोकते नजर आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. उपरोक्त पूरे प्रकरण में प्रतिक्रिया व बातचीत के लिए जब सुरेश यादव को बिहार कथा की ओर से कॉल किया गया तो रिस्पॉस नहीं मिला.






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