July, 2015

 

बिहार की सियासत में 'फैमिली फर्स्ट'

अरविंद शर्मा, पटना। बिहार की सियासत में वंशवाद कोई नई बात नहीं। मौका मिलते ही नेता अपनी विरासत संतान को सौंपने के लिए बेताब दिखते हैं। कुछ क्षेत्रीय दल तो परिवार की पार्टी बन गए हैं। इसमें जिसमें बेटा-बेटी और भाई-भतीजा के साथ समधी-समधिन के लिए भी जगह सुरक्षित रहती है। इसके बाद जगह बचती है, तो कार्यकर्ता स्थान पाते हैं। पार्टियों में परिवार को सबसे अधिक प्रमुखता मिलती है। इस चुनाव में भी बेटों, भतीजों, पत्नियों समेत नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट देने और दिलाने के लिए लामबंदी शुरू होRead More


तो क्या बंद हो जाएगी सासामुसा चीनी मिल!

गोपालगंज। आर्थिक संकट से जूझ रही सासामुसा चीनी मिल अब बंद हो सकती है. इससे पहले प्रतापपुर चीनी मिल आर्थिक संकट को नहीं ङोल पाई और 28 जून को बंद हो गई. अब सासामुसा चीनी मिल पर भी बंदी के संकट मंडराने लगे हैं. चीनी मिल प्रबंधन अपनी संपत्तियों को बेचने की फिराक में पड़ा है.  खुफिया जानकारी मिलने के बाद डीएम कृष्ण मोहन ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. डीएम ने एसडीओ रेयाज अहमद खां तथा जिला ईख पदाधिकारी उमेश सिंह के नेतृत्व में टीम का गठनRead More


चुनाव होगा बिहार में, मालामाल होगा चीन

अगर भारतीय कुटीर उद्योग इस चुनावी चुनौती को स्वीकार करने में समर्थ होता तो हमारी सरकार देश के हजारों करोड़ रुपए को चीन जाने से रोक सकती थी। अफसोस कि खरीदारी में सभी राजनीतिक पार्टियों के लोग शामिल हैं, लेकिन किसी ने इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया। एक आकलन के अनुसार पिछले साल लोकसभा चुनाव में केवल बिहार में ही चीन निर्मित प्रचार सामग्रियों का बाजार एक हजार करोड़ रुपए को पार कर चुका था। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए इन प्रचार सामग्रियों के स्टॉकिस्ट से लेकर वितरक तकRead More


पूंजी व तकनीक से मैनेज होगा चुनावी इवेंट

सुविज्ञ दुबे. पटना। पूंजी और तकनीक के मेल से पैदा होने वाली चमक ने सभी दलों को जबर्दस्त तरीके से अपनी तरफ आकर्षित किया है। पिछले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी इसकी सबसे बड़ी पैरोकार रही। इसका उसे सबसे ज्यादा फायदा भी मिला। अब कोई भी राजनीतिक पार्टी चूकना नहीं चाहती। चुनाव को बड़े फलक पर ‘इवेंट’ के तौर पर लेने की मानसिकता ने ‘मैनेजमेंट कंपनियों’ का भी रास्ता साफ किया और राजनीतिक दल इनकी सेवाएं लेने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। जदयू इस बार लोकसभा केRead More


मास्टरी छोड़ अब विधायक बनने चले गुरुजी

दीनानाथ साहनी.पटना। जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे ही इसके अलग अलग रंग दिखाई देने लगे हैं। कई मास्टर साहब (शिक्षक नेता) भी इस दंगल में दमखम दिखाने को तैयार हैं। वैसे कुछ गुरुजी पहले भी विधायक बन चुके हैं तो कई को मंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने का भी मौका मिला है। मजे की बात यह कि कई मास्टर साहब लंबे अरसे से विधायक बनने का सपना तो पाले हैं लेकिन उन्हें अबतक चुनाव लड़के का ही मौका नहीं मिला। इस बार भी इतिहास दोहराया जाRead More


समाजसेवा से मुंह मोड़ रही राजनीति

संजय सिहं, भागलपुर। पहले राजनीति को समाजसेवा का पर्याय समझा जाता था। लोग समाजसेवा के जरिए राजनीतिक गलियारों में पैठ बनाते थे। ए बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द रह कर लोगों की छोटी-मोटी मदद करते थे। इसी से उनकी पहचान बनी थी। बाद में राजनीतिक रूप से सक्षम होने के बाद ए अपने खर्च से स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला आदि के निर्माण की भी पहले करते थे। लेकिन, अब राजनीति समाजसेवा से मुंह मोड़ रही है। राजनीतिक गलियारे में जातिवाद और धनबल का बोलबाला हो गया है। पूर्व बिहार के मुंगेर मेंRead More


एक तिहाई सीटों पर टाइट फाइट

अरविंद शर्मा, पटना। चुनाव में जीत के लिए मुकम्मल तैयारी, संघर्ष और सियासी लहर बहुत बड़े फैक्टर माने जाते हैं, किंतु हार के लिए कभी कभी किस्मत को भी जिम्मेवार ठहरा दिया जाता है। सियासी बयार में किसी सीट पर कोई प्रत्याशी मामूली वोटों से जीत जाता है तो कोई महज कुछ वोट से पीछे छूट जाता है। नतीजा आने के बाद अक्सर पछतावा होता है कि थोड़ा जोर और लगा लिए होते तो शायद यह हाल नहीं होता। 2010 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को आज के हालात मेंRead More


बिहार की राजनीति में नाकामयाब होतीं महिलाएं

अनिल सिंह झा. पटना। राजनीति के क्षितिज पर किस्मत आजमाने में महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं हैं। पार्टी से टिकट न मिलने पर अपने बलबूते ही चुनाव मैदान में उतरने से परहेज नहीं करती। यह बात अलग है कि चुनाव में वे अपनी चमक बिखेरने में कामयाब न हो सकीं। प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या करीब 5.5 करोड़ है, जो पुरुष मतदाताओं से कुछ ही कम है। इतनी बड़ी आबादी पर तमाम राजनीतिक दलों की नजर रहती है और इनलोगों को अपनी तरफ करने की तरह-तरह की कोशिशेंRead More


नहीं दिखते अपने दामन के दाग

राजीव रंजन, पटना। आपराधिक छवि के राजनेताओं को लेकर सभी दलों के पास अपना-अपना आइना है। इसकी खूबी यह है कि इसमें उन्हें अपने दल के आपराधिक छवि वाले नेताओं की तस्वीर दिखाई नहीं देती, लेकिन पाला बदलते ही ऐसे राजनेताओं का आपराधिक इतिहास उन्हें नजर आने लगता है। शायद ही ऐसा कोई दल हो, जिसमें बाहुबली राजनेता न हों। विधानसभा चुनाव की आहट होते ही सभी दलों के बाहुबली राजनेता एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं। टिकट के लिए पार्टी तक बदल लेने की तैयारियां शुरू होRead More


संघर्ष से पीछे हटा वामपंथ

मनीष शांडिल्य. पटना नब्बे के दशक के अंत तक बिहार में वामपंथी दलों की दमदार मौजूदगी सड़क से लेकर सदन तक दिखाई देती थी। उस दौर में बिहार विधानसभा में वामपंथी दलों के 30 से अधिक विधायक हुआ करते थे। वर्तमान विधानसभा में मात्र एक वामपंथी विधायक सदन में है। बिहार में वामपंथी जनता के सवालों पर कोई बड़ा आंदोलन या लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हुए भी नहीं दिखाई देते। वामपंथी दलों के नेता इन सबके लिए अलग-अलग कारणों को जिÞम्मेदार मानते हैं। सीपीआई (एमएल) बिहार की बड़ीRead More


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